Monday, April 5,2021
8: 05 AM
प्यासा मन
सोमवार, ५ अप्रैल २0२९
ना समंदर था
ना दरिया था
ना पानी था
ना तालाब था।
बस मन प्यासा था
बहुत अधिरा था
पाने को बहुत उत्सुक
एक चंचलआशिक था।
कहने को बहुत कुछ था
पर नहीं कह पाता था
जुबान पर शब्द आते तो थे
पर कह नहीं पाते थे।
शहद का प्याला सामने था
में भी खड़ा आमने-सामने था
मेरे होठ सुख जाते थे
दुःख की गरता में खो जाते थे।
प्यार को में समझता था
अपने मन को समजाता भी था
पर उसकी गहराई मुझे डुबो रही थी
मन ही मन मुझे गभरा रही थी।
में अनिमिष नैनों से आकाश की और देखता
उसकी विशालता को मन ही मन सराहता
क्या धरती ओर अम्बर एक दूसरे को मिल पाते है?
नहीं मिल पानेपर भी उन्हें अमरत्व प्राप्त है
मुझे अचरज हुआ
हैरान तो नहीं पर गदगद हुआ
क्या प्यार में इतनी ताकत है?
उसकी अपनी शानो -शौकत है।
डॉ हसमुख मेहता
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
मुझे अचरज हुआ हैरान तो नहीं पर गदगद हुआ क्या प्यार में इतनी ताकत है? उसकी अपनी शानो -शौकत है। डॉ हसमुख मेहता