जहां धूप और छाँव लुका-छिपी खेलती है Poem by M. Asim Nehal

जहां धूप और छाँव लुका-छिपी खेलती है

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जहां टूटी दीवारें बोलने को आतुर हैं
और एक नदी पहाड़ की चोटी से एक कहानी ले जाती है।

जहां मवेशियों को हरी घास पर मुफ्त दावत खाने को मिलती है
पंछी को खुली आसमानी हवा और ऊचाई मिलती है

जहाँ पेड़ भी बांसुरी खुद बजाते हैं और बादलों को संगीत सुनते हैं
जहाँ मस्त होकर लोग नाचते और गाते हैं

जहां धूप और छाँव लुका-छिपी खेलती है
बारिश की बूँदें इन्द्रधनुष बिखेरती हैं

जहाँ आनंद की बेला पर इंसान सुकून पता है
अपने ग़मों को भूल तरो ताज़ा हो जाता है....

This is a translation of the poem Land Of The Scots. by M Asim Nehal
Friday, October 1, 2021
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