मैं एक हक़ीक़त हूँ जो ख़्वाब में आता हूँ। Poem by Ahatisham Alam

मैं एक हक़ीक़त हूँ जो ख़्वाब में आता हूँ।

तुम कहते हो ख़्वाब मुझे
तो तुमको बताता हूँ
मैं एक हक़ीक़त हूँ
जो ख़्वाब में आता हूँ।

नज़रों का वहम है ये
नज़रों का धोखा है
कब मिटने से हमको
तुमने भला रोका है
कोई कहता है मुझसे
दर्द बनके रुलाता हूँ
मैं एक हक़ीक़त हूँ
जो ख़्वाब में आता हूँ।

कल टूटा था दिल तेरा
अब मेरा टूटा है
अब जा के यक़ीन आया
क्या तोड़ के आता हूँ
मैं एक हक़ीक़त हूँ
जो ख्वाब में आता हूँ

तुम मुझसे बिछड़ के
कहते थे रक़ीबों से
जो मेरी नहीं मन्ज़िल
उसे तोड़ के आता हूँ
मैं एक हक़ीक़त हूँ
जो ख़्वाब में आता हूँ।

Saturday, January 19, 2019
Topic(s) of this poem: dream,love,reality
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COMMENTS OF THE POEM
T Rajan Evol 19 January 2019

Wah wah. 10

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