लेता चला चल Poem by Brajendra Nath Mishra

लेता चला चल

Rating: 5.0

जो ना मिला किसी से उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल

तू बांटता चल अपनी मुस्कराहटें,
हो सके तो आंसुओं को छुपाता चला चल.


जो लेता है दूसरों से याद रख उम्र भर,
जो देता है तू उसे भुलाता चला चल.

तू कुछ दे सका है, ये उसकी नेमत है,
शकून बांटता चल, सौगातें लुटाता चल.

जिंदगी कि परतें कुछ गीत लिख गयीं,
तू राही है उसे गुनगुनाता चला चल.

एक राग - सी फाग में उभर के उठी है,
एक उत्सव है जिंदगी मनाता चला चल.

मिलना बिछड़ना, बिछड़ना फिर मिलना,
ये सफर का सिलसिला है, भुलाता चला चल.

धुंध छटे, क्षितिज पे पौ फट रही,
तमस के कुहे को मिटाता चला चल.

जो ना मिला किसी से उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem was written in around 1998 when I met an accident.I had to go for troublesome physiotherapy of my right hand for two hours everyday. It continued for two months when I could be able to lift my right hand.
COMMENTS OF THE POEM
Ajay Kumar Adarsh 07 August 2016

बहुत खूब बहुत खूब...बड़ी ही मार्मिक...और नैतिक कविता है...

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Ajay Kumar Adarsh 07 August 2016

बहुत खूब बहुत खूब...बड़ी ही मार्मिक...और नैतिक कविता है...

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