तवारीख के पंख पर लिखेंगे क्रांतियां तो देख Poem by Brajendra Nath Mishra

तवारीख के पंख पर लिखेंगे क्रांतियां तो देख

चूल्हे जलते नहीं यहाँ किसी भी घर में,
फिर भी बस्ती से उठता हुआ धुआं तो देख.

महलों के कंगूरे गगन को चूमते हैं, मगर
मिलता नहीं यहाँ किसी को आशियाँ तो देख.

ये हरियाली जो दीखती है दूर तलक,
नजरें उठा, दूसरे तरफ का फैलता रेगिस्तां तो देख.

फूटपाथ पर सोये हैं जो लोग सट - सट कर,
उनके ऊपर का खुला आशमां तो देख.

जला चुके थे तुम जिन्हें चुन - चुन कर,
उस राख से उठती हुई चिंगारियाँ तो देख.

अब लाशें भी उठकर खड़ी हो गयी हैं,
हवा में उनकी तनी हुयी मुठियाँ तो देख.

ढूह में बदल जायेंगें महल दर - बदर,
खँडहर कहेंगे इन सबों की दास्ताँ तो देख.

वे जो सोते हैं भूख से बिलबिलाकर,
तवारीख के पंख पर लिखेंगे क्रांतियां तो देख.

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem, 'Tawarikh ke pankh par likhenge krantiyan” This poem was written at a time when I was a part of JP movement in my student days during 1974-75.This was the first movement in India after Independence to clean up the system which generates corruption. Unfortunately at the end the movement failed to achieve its goals.
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success