कमियां इंगित करो मेरी Poem by KAUSHAL ASTHANA

कमियां इंगित करो मेरी

सबसे कहता हूँ कमियां इंगित करो मेरी,
कोई टोके तो क्यो उलझता हूँ |
लोगो के बीच घूमता सफेद्पोश बनकर,
कोई औकात दिखाए तो क्यो उबलता हूँ |
सारे सदगुणों का ठेका ले रखा मैंने,
कोई आईना दिखाए तो क्यो दहलता हूँ |
ईश्वर ने दिया जो भी चाहा मैंने,
छोटी-छोटी चाहतों पे फिर भी क्यो मचलता हूँ |
इतनी ते़ज रफ्तार जीवन की है मेरे,
छण में उगता हूँ छण मात्र में ही ढलता हूँ |
जिससे शिकवा गम मिला कभी नहीं कोई,
न जाने क्यो उनसे भी रोज़ लड़ता हूँ |
बड़ी अजीब रहस्मय है यह दुनिया,
कौशल क्या करू इसी में जीता इसी में मरता हूँ |

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