पहरेदार Poem by KAUSHAL ASTHANA

पहरेदार

आँख मूँद कर बैठ गये
कैसे पहरेदार
चोर चुराये जा रहे
जीवन का आधार |

पानी बिजली मिले अधूरी
हवा हुई खामोश
महगायी सुरसा बनी
हुए ठिकाने होश |

भ़ष्टाचार की चलती आँधी
नुक्कड़-नुक्कड़ रेप
बोल विषैला नेताओं के
मधु मदिरा में लेप |

रोटी प्याज पहुँच के बाहर
भूखा पड़ा गरीब
दुर्लभ थाली आज घरों में
पत्तल नही नसीब |

दुःख से विह्वल चीख रहा
मजदूर गरीब किसान
फिर भी शासक नही पिघलता
बना हुआ पाषाण |

आँसू सूख गए नयनो के
आहे नही निकलती है
कौशल कैसा समय आ गया
रेत में नावे चलती है |

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