जगाकर आत्मा अपने Poem by KAUSHAL ASTHANA

जगाकर आत्मा अपने

Rating: 4.0


जगाकर आत्मा अपने को
देखो मन के दर्पण में
कभी असहाय दुख पीड़ित
गरीबों का ख्याल आया |

बहुत उम्मीद थी तुमसे
नया आलोक बिखरेगा
तुम आए ढला सूरज
अंधेरा और घिर आया |

वट वृक्ष जिसकी छांव में
भय मुक्त रहना था
काँटों की चुभन पीड़ा
लहू तन से निकल आया |

कहां थी कल्पना हम
चंद्रमा पर घर बनायेगे
मिलीं न छत पड़ी अब
जिंदगी पर साँझ की छाया |

जिन्हें आश्वासनो के ढेर में
अब तक दबा रखा
सुलग कर देखो अब उनका
फटने का समय आया |

मिथक थी पास आ तेरे
कोई खाली नही जाता
वक्त का यह सितम कौशल
जो था वह् भी गवां आया |

..............कौशल अस्थाना

COMMENTS OF THE POEM
Bhavna Singh 07 February 2014

kabile - tareef.....i like it

1 0 Reply
Geetha Jayakumar 29 January 2014

jab vakth nay berukh apnaya vakth biththa gaya aur Aatma sirf saya ki tarah he reh gaya....Kaushal ji appki kavitha bahuth acchi hai...

1 0 Reply
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