तुम्हारी चाह में भटका पर न पाया कुछ भी Poem by KAUSHAL ASTHANA

तुम्हारी चाह में भटका पर न पाया कुछ भी

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तुम्हारी चाह में भटका पर न पाया कुछ भी,
रोते बच्चे को हसाया तो कुछ सुकून मिला|
मंदिरों मस्जिदों में प्राथना की सिजदा किया पर न पाया कुछ,
पास कि झोपड़ी में दीप जलाया तो कुछ सुकून मिला|
देवी देवो को उम्र भर लगाया भोग पर न पाया कुछ भी,
भूखे को प्रेम से खिलाया तो सुकून मिला |
तुम्हारे दर पर सर पटक पटक रोता रहा कुछ मिला क्या,
बूढी मा के चरणों में सर झुकाया तो कुछ सुकून मिला |
पण्डित, मुल्ला, पादरी के पीछे भागते उम्र बीती पर मिला क्या,
अन्धे बाबा को सड़क पार कराया तो कुछ सुकून मिला |
'कौशल' कुछ ना हुआ ज्ञान की पोथी पढ़ कर,
आज दिल से एक गीत गुनगुनाया तो कुछ सुकून मिला|

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