तब कहीं होश आया Poem by KAUSHAL ASTHANA

तब कहीं होश आया

अपने गुनाहों को छुपाया
दुनियां से हमने
धिक्कार अन्तर से उठी
तब कहीं होश आया |

कैसे आए हँसी अधरों पे
शकून दिल को मिले
किसी से जब कभी न प्यार किया
न किसी को अपनाया |

उम्र भर भाग कर इकट्ठा किया
बहुत धन दौलत
हुआ सब व्यर्थ जब तुमको
यहां न रोक पाया |

दुःख दूर हो खुश रहें
सदा दुआ माँगी
खुशी कैसे मिले
जब किसी के काम न आया |

बड़ी रंगीन रंगों से सजी
प्यारी है यह दुनियाँ
अनाड़ी ही रहा कौशल
इसे रँगना नही आया |

.............कौशल अस्थाना

COMMENTS OF THE POEM
Geetha Jayakumar 27 January 2014

Badi pyaari thi yeh duniya Jisne hume rangna sikhaya Iss kavita ko kaushal nay bade hi pyaare rangon say bhar diya! ! ! Beautiful flow of words.

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