अपने गुनाहों को छुपाया
दुनियां से हमने
धिक्कार अन्तर से उठी
तब कहीं होश आया |
कैसे आए हँसी अधरों पे
शकून दिल को मिले
किसी से जब कभी न प्यार किया
न किसी को अपनाया |
उम्र भर भाग कर इकट्ठा किया
बहुत धन दौलत
हुआ सब व्यर्थ जब तुमको
यहां न रोक पाया |
दुःख दूर हो खुश रहें
सदा दुआ माँगी
खुशी कैसे मिले
जब किसी के काम न आया |
बड़ी रंगीन रंगों से सजी
प्यारी है यह दुनियाँ
अनाड़ी ही रहा कौशल
इसे रँगना नही आया |
.............कौशल अस्थाना
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
Badi pyaari thi yeh duniya Jisne hume rangna sikhaya Iss kavita ko kaushal nay bade hi pyaare rangon say bhar diya! ! ! Beautiful flow of words.