जहां से तय है गिर के मरुँगा लेकिन
उन्ही दुर्गम पहाड़ों से मै फिसलता हूँ |
रिश्ते नातों की हक़ीक़त जानता मगर
उन पर मिटने को फिर भी मैं मचलता हूँ |
हजार ख्वाहिशे फिहरिस्त में प्रतीक्षित है
पर एक नयी चाह रोज़ खड़ी करता हूँ |
जानता हूँ गुस्ताखियों का अंजाम बुरा
कदम रुकते न उन्हें बार-बार करता हूँ |
हसीन सपने छोड़ चुके नीद में आना
उजाले में सदा उनका ध्यान करता हूँ |
बिंदास मन परवाज भर आकाश छूने को
कौशल क्या करे कुछ करने से डरता हूँ |
.........................कौशल अस्थाना
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Sab kuch tay hai hakikath jantha hoon hazaroon khwaishoan eaisy Bure anjam ke khabar hai mujhe per...........Phir bhi dil say majboor hoon! ! ! Beautiful flow of words....Loved reading it.