अनुगामिनि हो Poem by KAUSHAL ASTHANA

अनुगामिनि हो

तुम बनी क्यो रूप की अनुगामिनि हो |
नाम कोई अब न, केवल कामिनी हो ||

पा लिया आदर तथा अधिकार तुमने |
पर नही अब अर्पिता अर्धांगिनी हो ||

देख् शर्माऊ तुम्हे या गौरवान्वित |
पुष्प पैरों से कुचलती मालिनी हो ||

पापिओ के पाप से मैला हुआ तन |
अब नही भव मोक्ष कि तुम दायिनि हो||

लड़ रही हर ओर फैले भेड़ियों से |
हो बहादुर बहुत पर तुम दामिनी हो ||

तुम धरा पर जी रही हो गर्व से प्रिय |
पर दिलो कि अब नही तुम स्वामिनि हो ||

शांत तेरे स्नेह् आँचल कि बयारे |
अब न जो उठती यहां वह रागिनी हो ||

स्नेह् का वट सूखता क्यो आज महि से |
उज्जवले प्रिय तुम बनी अब यामिनी हो||

.............................. कौशल अस्थाना

Thursday, July 24, 2014
Topic(s) of this poem: love
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