गुल खिला बहुत मोहब्बत के मगर, प्यार् की गहरायी न माप सका
जिन्दगी गा गा कर थक गया प्यार् के नगमे बहुत, पर प्यार् की कलायी न छू सका
न जाने कितने जिंदगी तेरी प्यार् मे गुजर गए ओ बेखबर, अब तो अश्क भर ले प्यार् के अपने नयन मे
मैने था कदम बढाया गहरी प्यार् की खायी मे, कोई तो होगा वहा जो थामेगा मेरा कदम
मतलबी जहाँ ने मुझे अपने हाल पे डुबोने दिया, क्या कहूँ कम्बक्थ! प्यार् ने उस बक्त भी उसे याद किया
मुझे आज बहारों मे पतझर की याद आयी, अपनी नग्नता की कहानी जो कभी पतझर ने सुनायी
बहारों ने उतारा लिवास तो पतझर बना, जिन्दगी ने उतारा लिवास तो मौत बना
हर शख्स यहाँ लिवासों मे पहचान बरा ही मुश्किल है, जीवन ने हटाया जब पर्दा एक सांस यहाँ फिर मुश्किल है
हमसफर जब सफर मे साथ छोर दे, ट्रेन पटरी पे पटरी का साथ छोर दे
जिन्दगी से मोहब्बत जब साथ छोर दे, मौत मे मौत तब जिन्दगी छोर दे
जुगनूओ ने जलायी जब दीपक प्यार् की, हर तरफ फिर उजाला रात को हो जाये
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A great expression of love...well written..