चार ग़ज़लें
- डॉ. वेद मित्र शुक्ल
अंग्रेजी विभाग, राजधानी कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110015
मोबः 09599798727; ईमेलः vedmitra.s@gmail.com
1.
दीपावली है छा गयी बाजार में यारो,
है इश्तहार छप गये अखबार में यारो!
सौदे, मुनाफे, हाट औ मेले तो सही थे,
पर, अब तो मन लगे है लूटमार में यारो!
होने लगी है अब तो लो बल्बों से रोशनी,
दीवाली दिखे है नये अवतार में यारो!
मिट्टी के दीये अब कहाँ पत्थर के मकां में,
यादें ही बची अब तो हैं घर-द्वार में यारो!
अब गाँव-शहर दोनों को है जी रहा मजदूर,
लगता है वह तो फँस गया मजधार में यारो!
2.
कहने को तो कितने कहते सगा मुझे,
तुम आये तो सब कुछ भाने लगा मुझे।
दुश्मन से लड़ना होता आसान मगर,
डर है अपने ही दे देंगे दगा मुझे।
सुनो फरेबी! इसको कहना कभी नहीं,
बदले में अहसान के जो है ठगा मुझे।
नफरत की आँधी से जो हैं बचे रहे,
सबने पाया गहन प्रेम में पगा मुझे।
दुनिया तो माया ही है क्या और कहूँ,
जाते-जाते गये आज तुम जगा मुझे।
3.
दिलवाले ही नफरत की दीवार ढहाते हैं,
दुनिया में आशियाने मोहब्बत के बसाते हैं।
वह गीत सिखाया था हमको जो आपने कल,
तनहाइयों में उसको हम गुनगुनाते हैं।
भेजी थी एक चिट्ठी उसने जो हमें दिल से,
हम तो कभी जवां थे ये सबको बताते हैं।
होती हैं एक सी ही सबकी कहानियां पर,
होता है फर्क उनमें जो सुनते-सुनाते हैं।
ताकत है बहुत यों तो तलवार में, पिस्टल में,
पर, इश्क के आगे तो सिर शाह झुकाते हैं।
नाचे हैं राधिका के संग प्रेम के ही वश में,
वे बांसुरी बजैया तो सबको नचाते हैं।
4.
जलते हैं जो शम्मा के संग हम भी उन परवानों में,
ढ़ूढ़ोंगे पा ही जाओगे हम को भी अफसानों में।
छेड़ दिया कब तेरी बातें अपनी ग़ज़ल के शेरों में,
सच में हमको पता नहीं हम शामिल हैं दीवानों में।
तारीफें तारूफ हुई पर उसके पीछे तुम ही हो,
ज्यों बजती रहती थी राधा मुरली की उन तानों में।
तेरी नज़रों का वह जादू अब भी हम पर छाया है,
ऐसा नशा चढ़ा हो तो फिर जाना क्या मयखानों में।
मौसम आते-जाते हैं पर यादों में तुम वैसी ही,
अब भी महक रही फूलों सी यादों के गुलदानों में।
(साभार: समहुत, अक्टू-दिस 2017)
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