A-031. दुःख है तेरा Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-031. दुःख है तेरा

दुःख है तेरा 11.5.16—6.03 AM

दुःख है तेरा इस कदर दूर जाने का
रहेगा इंतज़ार फिर से तुम्हें पाने का
तासीर हमारी भी कुछ इस कदर है
तुम्हें भी दुःख होगा बिछुड़ जाने का

ऐसा नहीं कि केवल हम तन्हा हुए
शाम को इंतज़ार होगा तेरे आने का
गुलाब के पटल खुशबू बिखेरते हुए
करते होंगे इंतज़ार तेरे मुस्कराने का

महकती बहकती वो सुन्दर फिजायें
बिसरें वो कैसे तेरी अनमोल अदायें
झुक के छू लेते थे जो तेरे बदन को
कैसे वो पत्ते भी तबस्सुम भूल जाएँ

उड़ती चुनरिया या पवन का बहाव
दोनों को खलेगा कुछ तेरा अभाव
अठखेलियां करे टहनी का झुकाव
रुक रुक ढूंढेंगे वही तेरा हाव भाव

हरी भरी मखमली घास का आभास
बना देता था हर पल को बहुत खास
जहाँ घंटों बैठे लुत्फ़ उठाया करते थे
कसमें वादे कर वक्त जाया करते थे

कोई और भी है जो तन्हा हो गया
प्यार का हर लम्हा कहीं सो गया
बिसर जाएं शायद लम्हें भी कभी
वक्त भी जुदा और तन्हा हो गया

दुःख है तेरा इस कदर दूर जाने का
रहेगा इंतज़ार फिर से तुम्हें पाने का……….
रहेगा इंतज़ार फिर से तुम्हें पाने का……….

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-031. दुःख है तेरा
Wednesday, May 11, 2016
Topic(s) of this poem: love and friendship
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