क्या देखते हो 26.5.16-5.57 AM
क्या देखते हो मैं वही हूँ बस! ! !
नहीं है तो वो अहंकार नहीं है
कुछ साबित करने को नहीं है
किसी से कोई तकरार नहीं है
बस अब कोई इजहार नहीं है
न कोई गिला न कोई शिकवा
दुःख दर्द और परिवार नहीं है
न कोई अपना न कोई पराया
मेरा अब कोई संसार नहीं है
रिश्ते नाते सब झूठे निकले
इनसे कोई सरोकार नहीं है
न कोई जद्दो न जहद है अब
दिल भी अब बेकरार नहीं है
किसको क्या दिखाना है अब
दिल भी अब शर्मशार नहीं है
औरों के लिए जिये थे अबतक
न रही अब वो रफ़्तार नहीं है
लम्बे सफर का डर सताता था
वो डर भी अब बरकरार नहीं है
ले जाये वो अब उसकी डगर है
मुझे अब कोई इन्कार नहीं है
बड़े सम्मान का भाव था मन में
मेरा अब कोई सम्मान नहीं है
काश जी लिए होते खुद के लिए
अब तो बिसरे अरमान भी नहीं हैं
न कोई गम है न कोई ख़ुशी है
गरीबी अमीरी ख्याल भी नहीं है
न कोई अच्छा है न कोई बुरा है
नहीं है अब तिरस्कार भी नहीं है
कोई काम पूरा हुआ ही नहीं
अब तो वो एहसास भी नहीं है
काम करते करते खुद पूरा हुआ
जिंदगी भी अब इख्तियार नहीं है
है तो केवल एक चीज़ बस
अब किसी का इंतज़ार नहीं है
अब मिली है जो परम शांति है
जिसका कोई शिल्पकार नहीं है
क्या देखते हो मैं वही हूँ बस
जिसका कोई आधार नहीं है.....
जिसका कोई आधार नहीं है.....
Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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