उन लम्हों के संग 19.2.16—4.24 AM
उन लम्हों के संग
जीने का मजा अपना है
जिन लम्हों में तेरी तस्वीर
दिखाई देती है
वो पहाड़ों के टीले
वो आसमान नीले
घंटों हरी घास पर
लेटे एकदम अकेले
वो बर्फ की चट्टानें
पड़ी गुफा के मुहाने
वो गोलों का तांडव
जैसे कौरव और पांडव
झरनों का शोरगुल
वो बहकता पानी
वो तुम्हारी छींटा कशी
वो अंदाज़ नूरानी
मचले दरिया का पानी
करे अपनी मनमानी
आलिंगन वो तेरा
सुनाये सारी कहानी
दूर उलझता सुनहरा पानी
रवि से करता कोई कहानी
पल्लू भी तेरा उड़ उड़ जाये
धीरे से अपनी मंशा बताये
आओ आज फिर मिल बैठें
फिर उसी आसमान के तले
जहाँ तारों का झुरमुट हो
चाँदनी का संगीत हो
न कोई गिला न कोई रीत हो
बस मैं रहूँ और मेरा मीत हो...
बस मैं रहूँ और मेरा मीत हो
Poet; Amrit Pal Singh Gogia
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Great imagery and nice romantic poem...maza aa gaya