कैसे इंकार करोगे 29.5.16—5.07 AM
क्या बात करोगे किसकी बात करोगे
वही पुराना कचरा फिर आबाद करोगे
किसकी शिकायत किसने सताया
अपनी छोड़ औरों की बात करोगे
खुद को कभी तुमने जाना ही नहीं
फिर भी औरों का उपहास करोगे
तेरा क्या है जिसका तुम मान करते हो
वही घिसा पिटा जिसका इजहार करोगे
जो इंगित करोगे वो पुराना ही तो है
फिर कैसे कुछ नया अविष्कार करोगे
कितना दम भरते हो न अपने होने का
फिर कैसे किसी से मुलाकात करोगे
खुद को जानते नहीं पहचानते नहीं
औरों की बारे खुलकर बात करोगे
खुद से कभी प्यार किया ही नहीं
औरों से क्या खाक प्यार करोगे
सब कुछ औरों से ग्रहण किया है
अपना कहकर सारी बात करोगे
खुद को भी तुमने कभी सुना ही नहीं
औरों से तुम कैसे वार्तालाप करोगे
खुद पे तो खुद को भरोसा भी नहीं
किसी पर कैसे तुम ऐतबार करोगे
कितना गुमाँ है न तुम्हें अपने होने का
फिर भी कुछ न कुछ फरियाद करोगे
बहकते क़दमों से मुझ तक पहुंचे हो 'पाली'
फिर भी किसी पुरानी मंजिल की बात करोगे
शपथ संयम क्रिया करम सब पुराने हैं
कुछ नया हो जाये कैसे ऐतबार करोगे
याद करो न जो पहली बार मिला था
आज भी कैसे उसका इज़हार करोगे
चलो आज थोड़े से पागल हो जायो
कुछ नया करने से कैसे इंकार करोगे …..
कुछ नया करने से कैसे इंकार करोगे …..
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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Nice sir!