A-128. मैंने अपने हाथों से Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-128. मैंने अपने हाथों से

मैंने अपने हाथों से 12.3.16—10.46 AM

मैंने अपने हाथों से तुझको रुख्सत किया
फिर क्यूँ इंतज़ार है तेरे आने का

सिलवटें हज़ार सही पर थी तो अपनी ही
फिर क्यूँ इंतज़ार है उनको मिटाने का

हर साल मँझर आयेंगे और फूल खिलेंगे
फिर क्यूँ इंतज़ार है उनको रिझाने का

पसीने से बेज़ार हो रही है जिंदगी
फिर क्यूँ फ़िक्र है खुद को थकाने का

बेवफा तुम भी नहीं थे बेवफा हम भी नहीं थे
फिर क्यूँ इंतज़ार है तुझको भूलाने का

रास्ते जुदा होने के हमने ही चुने हैं
फिर क्यूँ इंतज़ार है तेरे आने का

प्यार तो हम अब भी करते हैं सनम
फिर क्यूँ इंतज़ार है इसको जताने का

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Saturday, March 12, 2016
Topic(s) of this poem: love and life
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