सोलह सिंगार किये 17.3.16—2.24 AM
सोलह सिंगार किये
फूलों का हार लिए
घूँगट की छाँव में
बिखरी अदाओं में
दिल में मनुहार लिए
मौसम को साथ लिए
थोड़ी सी बौछार किये
एक सुबह मुस्कराई है
बधाई है! बधाई है!
कविता भी आई है
लश्कर अदाओं का
महकती फिजाओं का
हर पटल खिला हुआ
सिन्दूर से सिला हुआ
मोतियों से सजा हुआ
खुदा संग रजा हुआ
पवन भी चरमराई है
न रुस्वा न रजाई है
बधाई है! बधाई है!
कविता भी आई है
कैसी ये बहार है
फिजा को दरकार है
ठंडी हवाओं का
नमन स्वीकार है
मखमली दूब तले
हो रहा विस्तार है
कुदरती संगीत का
हर पल झंकार है
हर एक करिश्मा है
सुन्दर ये आकार है
इनके पीछे छुपा
मेरा कलाकार है
देखो वो कैसे
दबे पाँव आई है
बधाई है! बधाई है!
कविता भी आई है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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बधाई है! बधाई है! Bahut badhiya....10++++