A-158 तुम्हारे प्यार में Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-158 तुम्हारे प्यार में

A-158 तुम्हारे प्यार में -2-5-15


तुम्हारे प्यार में मैं तो दीवाना हो गया
पागल हो गया और परवाना हो गया

पागल हूँ ढूँढ रहा हूँ तुम्हें बस्ती बस्ती
जिंदगी का सफर भी सुहाना हो गया

सारे जहां से ऊपर तुम नज़र आते हो
तन्हा बैठने का सबब पुराना हो गया

हवाओं से भी पूछा कि तुम कहाँ हो
ले चली जैसे कोई दीवाना हो गया

फिज़ा मुझे देख क्यों कतराने लगी
कहने लगी दस्तूर दोहराना हो गया

बेताब हुई ज़िंदगी तब शरूर आया
जब मेरा घर ही मयख़ाना हो गया

भरोसा ज़िंदगी का टूटने लगा जब
तेरी यादों का मैं क़ैदख़ाना हो गया

कोई अकेला थोड़े ही चला आता है
तेरी याद आयी जब विराना हो गया

तू भी तन्हा हुई थी यह मैं जानता हूँ
तेरा शबाब इश्क़ मयख़ाना हो गया

अकेले सफर मैं भी नहीं कर सकता
तेरी यादों को लेकर रवाना हो गया

कुर्सियां भी अब चिरमिराने लगी हैं
बैठने का अन्दाज़ लुभावना हो गया

दीवारें भी खुद से बातें करने लगीं
नग़्मों की धुन का भी आना हो गया

खोए खोए नग़्मे अब उभरने लगे है
दर्द के साथ इनका याराना हो गया


Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-158 तुम्हारे प्यार में
Tuesday, March 10, 2020
Topic(s) of this poem: love,relationship
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