A-161 किशोरावस्था Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-161 किशोरावस्था

A-161 किशोरावस्था 27.6.17—6.09 AM

किशोरावस्था में रहती हूँ
कितना दुःख मैं सहती हूँ

जल्दी उठ जाना पड़ता है
मुझे रोज़ नहाना पड़ता है

अतिशीघ्र तैयार हो जाओ
वर्ना मम्मी की डांट खाओ

नाश्ता भी खाना पड़ता है
स्कूल भी जाना पड़ता है

होमवर्क करना पड़ता है
टयूशन मारे मन डरता है

मम्मी पापा के तेवर को
मुझे ही सहना पड़ता है

बच्चे नाटक को बंद करो
पढ़ाई का तुम प्रबंध करो

खुद फ़ास्ट फ़ूड खाते हैं
हमको वज़ह समझाते हैं

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-161 किशोरावस्था
Tuesday, March 10, 2020
Topic(s) of this poem: childhood ,family
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