A-162 एक झलक Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-162 एक झलक

A-162 एक झलक -29-4-15—3.38 AM

उसकी आँखों में संशय की झलक देखी है
सच बोलने की तमन्ना और ललक देखी है

प्यार करने की कशिश और तलब देखी है
इज़हार में इकरार की एक पलक देखी है

उसकी नफरत देखी है उसकी निगाहों में
उसके टूटे हुए सपने देखे उसकी राहों में

उसकी बेचैनी देखी है उसकी अदाओं में
स्वप्निल व्यथा देखी उसकी गाथाओं में

उसकी निगाहों में हया का ज़िस्म देखा है
बढ़ी हुई धड़कन व उसका चलन देखा है

शर्माया हुआ चेहरा और गुलबदन देखा है
दुविधा वश सोच में पड़ी को मग्न देखा है

उसकी आँखों में भी गज़ब का सन्नाटा है
तूफान का इशारा और पारा चढ़ जाता है

मत छुओ मुझे ऊँगली से करती है इशारे
चिंगारियां क्यों निकलती हैं गुस्से के मारे

उसकी शैतानी आँखों में नज़र आती है
मुस्कान मौन होकर क्यों ऐसे इतराती है

उसका रूठ जाना खुद को मना लेना भी
उसकी जवानी की कहानी कह जाती है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

Tuesday, March 10, 2020
Topic(s) of this poem: love,relationships
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