A-164 दूर क्यूँ खड़े हो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-164 दूर क्यूँ खड़े हो

A-164 दूर क्यूँ खड़े हो-22.8.15—11.01 PM

इतनी दूर क्यों खड़े हो पास मेरे तुम आओ न
अँखियाँ न भरो तुम यूँ मुझे भी यूँ रूलाओ न

काँपते होठों से सहीं जो भी हुआ बताओ न
सारा बोझ उठा रखा है मुझे भी दे जाओ न

थोड़ा सब्र करो खुद को तुम यूँ तड़पाओ न
बरस पड़ो मुझ पर खुद को तुम सताओ न

तेरी ख़ुशिओं के सहारे ही तो हम ज़िन्दा हैं
ये सहारा मुझ से छीन तुम लेकर जाओ न

थोड़ी देर के लिए ही सही मगर आ जाओ
मेरी बाँहों में आकर थोड़ा सा मुस्कुराओ न

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-164 दूर क्यूँ खड़े हो
Tuesday, March 10, 2020
Topic(s) of this poem: love
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