A-181 खुद को जाना नहीं Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-181 खुद को जाना नहीं

A-181 खुद को जाना नहीं 14.6.15—6 AM

यह कैसीज़िंदगी है
यह किसकी बंदगी है
खुद को जाना नहीं
उनको पहचाना नहीं
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं

रस कहाँ से लाऊँ
कौन सी कहानी सुनाऊँ
किसकी बातें करूँ
किसके मैं संग जाऊँ
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं

हसूँ भी तो किस मिसाल पे
रोना भी आये तो किस बात पे
मुस्कुराऊँ तो किस आभास में
शुक्राना भी किस सौगात में
शांति भी तो शुक्राना है
किसको क्या बताना है
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं

रोना भी आ जाता गाहे
उदासी भी छा जाती है राहे
कुछ तो स्फुरित होता
कुछ तो अंकुरित होता
कुछ तो पहचान होती
कहीं मैं बेईमान होती
बात कुछ ईमान की होती
थोड़ी मेरी पहचान होती
किसी को जाना भी नहीं
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं

किस पर मैं ऐतबार करूँ
गिले शिकवे और वार करूँ
किस की शिकायत करूँ
किस की हिमायत करूँ
किसको मैं प्यार करूँ
क्या है जो इजहार करूँ
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-181 खुद को जाना नहीं
Sunday, January 21, 2018
Topic(s) of this poem: life,love,relationship
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