आस जताओ Aas Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

आस जताओ Aas

आस जताओ

गुरु ने दस्या (बोला)
तू युही फस्या (फस गया)
इसीको कहते माया
गुरु ने हँसते हँसते फ़रमाया।

हमारे मन में बात कहाँ उतरनी थी?
बस जोश था ओर जवानी थी
खून खोल रहा था ओर आवेश था
कुछ कर गुजरने का आदेश था।

लेकिन प्रभु में थी अतूट श्रद्धा
और में बनना चाहता था अदना बंदा
बस एक चाहती की प्रभु जी मेरा उद्धार करे
अपने ध्वार सदा खुले रहें
मुझे उनके पास जाने की अनुमति दे।

गुरुजी कहते थे ' उसकी गति न्यारी'
वो तो है निष्ठुर और अलगारी
पर प्रेमरस से है भरपूर
निरंकार ओर प्रकाशपुंज से एकाकार।

मेरे गुरु ने मुझे कहा
और मैंने ध्यान से सीना
ना लेना किसी की हाय
वो जोजन दूर सुनाय।

नानक बोले 'दुखभरा है संसार'
पर बनाओ उसे अमृतसागर
उसमे दुब जाओ और करो रसपान
प्रभ देंगे आपको ऐश्वर्य और मानपान।

'वाह गुरु, आपकी मर्जी '
में तो करू सादी अरजी
मिलन की आस है कभी तो मिलना!
सामने किनारा है हमें तो पहुँचाना।

ना चाहु में बड़े खानपान
बस चाहिए दो रोटी बन के मेहमान
या तो खा जाओ या खीला जाओ
मेरे दिल में थोड़ी तो आस जताओ।

आस जताओ Aas
Friday, June 23, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

Jawahar Gupta नानक बोले दुखभरा है संसार पर बनाओ उसे अमृतसागर Like · Reply · 1 · 3 hrs

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welcome jawahar gupta Like · Reply · 1 · Just now

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welcome aman pandey Like · Reply · 1 · Just now

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ना चाहु में बड़े खानपान बस चाहिए दो रोटी बन के मेहमान या तो खा जाओ या खीला जाओ मेरे दिल में थोड़ी तो आस जताओ।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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