अपने मद में Apne Mad Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपने मद में Apne Mad

अपने मद में

माना गया है
अपनाया गया है
जीवन का सिद्धांत
ओर रहता है मरण पर्यन्त

पति का फर्ज
सब जगह है दर्ज
कुल को आगे बढ़ाना
अच्छा नाम कमाना।

शादी के पवित्र बंधन से बंधना
पत्नी को धर्म के अनुरूप अपनाना
योग्य अवसरोंपर उसकी रक्षा करना
और जीवन पर्यन्त निर्वाह करना।

अब जीवन बदला है
लोगों का सोचना ओर फिसला है
मानक दंड नहीं पर विचार मंडराते है
लोग बहुत लुछ कहते है।

अब मानव धर्म भी एक धर्म है
ना मानो तो अधर्म है
हर कोई सही नहीं चलता
अपने मद में हाथी की तरह चलता।

अपने मद में Apne Mad
Saturday, September 30, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 30 September 2017

अब मानव धर्म भी एक धर्म है ना मानो तो अधर्म है हर कोई सही नहीं चलता अपने मद में हाथी की तरह चलता।. . .. we such bat hai. Khubsurat geet likhen hain aap Amathalal ji. Sukriya.

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Kumarmani Mahakul 30 September 2017

अब मानव धर्म भी एक धर्म है ना मानो तो अधर्म है हर कोई सही नहीं चलता अपने मद में हाथी की तरह चलता।. . .. we such bat hai. Khubsurat geet likhen hain aap Amathalal ji. Sukriya.

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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