अय वतन.. Ay Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अय वतन.. Ay

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अय वतन
सोमवार, १७ सितम्बर २०१८

अय वतन
तुझ पे कुर्बान
मेरा धन
और तन।

कैसे गाउँ तेरी गाथा?
मेरे देश की कथा
जो भी मैंने सुना था
वो पूरा नहीं, अधूरा था।

लुटा दूँ पूरी जिंदगी
और करता रहूं बंदगी
प्रभु करे रक्षा, उन बहादुरों की
और डटे रहे, शूरवीरों की।

मौक़ा एक है मिला
फिर क्यों ना रखु ऐसी भावना?
शोहरत ना मिले और कोई नामना
बस रही है सदा, यही तमन्ना।

देश है सब से ऊपर
उसके है अनगिनत उपकार
जितना लौटा सको, उतना लौटा दो
देश की शान के लिए जान भी न्योछावर कर दो।

हसमुख अमथालाल मेहता

अय वतन.. Ay
Monday, September 17, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 17 September 2018

देश है सब से ऊपर उसके है अनगिनत उपकार जितना लौटा सको, उतना लौटा दो देश की शान के लिए जान भी न्योछावर कर दो।......touching expression wit great theme. A beautiful patriotic poem so nicely executed. Thank you dear sir for posting this gem.

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 September 2018

देश है सब से ऊपर उसके है अनगिनत उपकार जितना लौटा सको, उतना लौटा दो देश की शान के लिए जान भी न्योछावर कर दो। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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