ए चाँद यूँ बादलों में,
तुम छुपना छोड़ दे,
है जब बेशर्मी ही,
तेरी हक़ीक़त,
तो यूँ शर्माने कि,
अदा छोड़ दे|
गई है जानें कितने,
आशिक़ों कि तेरी बदौलत,
गर है ज़रा भी इल्म,
तो यूँ बेवफाई कि,
रस्में निभाना छोड़ दे,
ए चाँद यूँ बादलों मे,
तुमं छुपना छोड़ दे!
- - अभिनव राज- -
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem