बसेरा ढूँढ लो
Saturday, April 21,2018
7: 36 AM
में तो अकेली ही थी
कोई भी सहेली नहीं थी
तुम आए मेरी जिंदगी में
मैंने अनुभव किया जीवन में।
क्या बहार थी?
क्या संदेशा लाई थी?
मेतो मन्त्रमुघ हो गयी
अपने आप में सुदबुध से खो गयी!
मैने चाहा में सरपट दोडी आऊं
आप में समा जाऊं
लुटा दु सर्वस्व और कर दूँ जान न्योछावर
क्यों की तुम ही तो थे मेरे वर!
पर समय ने करवट ली
आपने हम से दिल्लगी कर ली
ऐसा मोहभंग कर लिया की हम रो पड़े
अपने आप से खुद लड़ पड़े।
क्या प्रेम करना गुनाह है?
क्या यही वजह है?
हम सेखफ़गी मोल लेने की?
किसी के दिल को ठेस पहुंचाने की?
अरे कभी पूछ तो लेते?
और कह भी देते?
आप दुसरा बसेरा ढूँढ लो!
बस सीधे मुंह चलते बनो
अरे कभी पूछ तो लेते? और कह भी देते? आप दुसरा बसेरा ढूँढ लो! बस सीधे मुंह चलते बनो
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S.r. Chandrslekha Bahut sunder. Beautiful write poet. 1 Manage Like · Reply · 1m