Bridge Ki Paribhasha Poem by Abhaya Sharma

Bridge Ki Paribhasha

Rating: 5.0

जब चार यार मिल जाये
संग ताश की गड्डी हो
सबको ब्रिज आता हो
क्या मौज हो मस्ती हो

तेरह पत्तो में जब तेरह हो नंबर
बोली तब ही बोलो ओ लाला ओ मिस्टर
ब्रिज खेल सभी का जग में
सब यहाँ ब्रदर सिस्टर

एक एक इक्के के तुम
यहाँ गिन लो नंबर चार
किंग जितने हो उनके
तुम तीन जोड़ लो यार

हर रानी के दो नंबर
हो जैक का एक नंबर
किस रंग के कितने पत्ते
यह देख समझ लो यार

चिड़ी ईंट है माइनर
और पान हुकुम मेजर
नो ट्रंप है इनसे बढ़कर
बोली हो बढ़ चढ़ कर

कैसे कैसे क्या बोलें
और कब क्या न बोलें
जब बोली लगती हो
मिलकर ताकत तोलें

कोई मेजर रंग खेलेगा
कोई नो ट्रम्प बोलेगा
कोई पास करेगा आगे
कोई डबल भी कर देगा

कैप्लेटी कोई खेलेगा
जैकोबी ट्रांसफर होगा
ब्लैक्वुड कन्वेशन का
स्लैम में प्रयोग होगा

जब एन टी में खेलोगे
तुम्हे तीन बनाने हैं
हुकुम पान में तुमको
चार हाथ कमाने हैं

मज़बूरी हो तब ही
तुम चिड़ी ईंट खेलो
हो पांच हाथ की हिम्मत
तब ही मुंह तुम खोलो

अब खेल शुरू होता है
फोकस पत्तो पर हो
जिसकी बोली ऊंची थी
वो खेलेगा खुलकर

जब खेल ख़तम होगा
सब लिखा जायेगा
क्या खोया या क्या पाया
अब बतलाया जायेगा

अभय शर्मा
26 जनवरी 2013

Tuesday, January 5, 2016
Topic(s) of this poem: games
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem ws created for a closing function of orientation course in Comntract bridge at Anushakti Nagar..
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 09 January 2016

Very amazing drafting is shared on games. On thirteen leaves there is magic and on ideas of four friends this explores. Very wise and interesting poem shared really.10

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Abhaya Sharma

Abhaya Sharma

Bijnor, UP, India
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