मेरे अंगोंसे अंग काटकर
कॊई जीवन पार लगा देना
मरने के बाद मेरे हमदम
जग का कल्याण करा देना
कॊई नेत्रहीन पा नेत्र मेरे
जब इस दुनिया को देखेगा
मेरे जाने के बाद मेरा
जीवन सार्थक हो जायेगा
पुलकित होकर उसका मन
जब भावनाऒं को समझेगा
मेरी आंखें जग में होगीं
एक पुनर्जन्म हो जायेगा
यह परोपकार नही मेरा
समझो इसको मेरा सपना
मैं धन्य नही मैं पुण्य नही
सब जग का है यह जग अपना
इतना ही जतन बस कर लेना
ये नेत्र दान तुम कर देना
एक छोटी सी है विनती मेरी
आंखों कॊ अमृत दे देना
अभय शर्मा,16 अप्रैल 08
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