मैंने खूब चाहा
Tuesday, August 4,2020
9: 49 PM
मुहब्बत में मर जाना
पर छोड़ के कभी ना जाना
मैंने ये फलसफा अपनाया
दूसरों को दिल से अपना बनाया।
दिल रहा तरसता
जब बारिश का पानी बरसता
नदी नाले में पानी बह जाता
मुहब्बत की याद ताज़ी कर जाता।
मन से मैंने खूब चाहा
मिला फल तो खूब सराहा
जो था मेरे भाग्य में
हो गया ग्राह्य दिल से।
मेरी महोब्बत अब रंग लायी है
बसंत की एक लहर आई है
फूल खिले है रंगबेरंगी
जीवन है एक सतरंगी।
मुजेना कहना अब रुक जाओ
प्रेम की तड़प को ना रुकवाओ
अब तो हो गया है इश्क़ दिल से
स्वर्ग बन जाएगी जिंदगानी एक बार मिलने से
मिल लो एक बार
नहीं भूल पाओगे संसार
इस में है खूब सार
रहो सदा खुश और मिलनसार।
डॉ. जाड़िआ हसमुख
Date & Time: 8/4/2020 11: 33: 00 AM Remove this comment Poem: 58904221 - मैंने खूब चाहाchaha Member: Sharad Bhatia Comment: गुरुजी सादर प्रणाम बेहतरीन कविता..
From: Sharad Bhatia (New Delhi India; Male; 42) To: Mehta Hasmukh Amathalal Date Time: 8/4/2020 11: 31: 00 AM (GMT -6: 00) Subject: Regarding ऐ मोहब्बत गुरुजी सादर प्रणाम, गुरुजी आशा करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप पूर्ण रूप से स्वस्थ रहे।। आपने मेरी छोटी सी कल्पना को पसंद किया और इसे सराहा आपका बहुत - बहुत धन्यवाद गुरुजी आप मेरे मार्ग दर्शक हैं मैं आपसे बहुत कुछ सीखना चाहता हूँ। आपका छोटा सा शिष्य (शरद भाटिया)
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इस में है खूब सार रहो सदा खुश और मिलनसार। डॉ. जाड़िआ हसमुख