डग आगे करो Dag Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

डग आगे करो Dag

डग आगे करो

नजर अंदाज करो
अपने डग आगे करो
नजरे टिका के रखो
इधर उधर की आवाज जरूर से सुनो।

आपको संकेत मिलेगा
भय सूचक निशानी का आगाह करेगा
आप अपने कान खुले रखे
बस अपने अंदाज से आघे बढे।

भटक ने वालो को मंज़िल नहीं मिलती
उसकी तो हो जाती है उलटी गिनती
हर चीज़ को शक की निगाह से नहीं देख सकते
हर भोंकने वाले कुत्ते से दंगल नहीं कर सकते।

मौक़ा-ए - वारदात को अंजाम दे दो
नफ़ा नुक्सान के बारे मे बाद में सोचो
आप सलामत रहोगे चौकन्ने होने की वजह से
अनजानी सी लगती जगह भी देगी पनाह देगी फट से।

अपना रुख साफ़ कर दो
जीत का अंदाजा पहले से रखो
हो सकता है ज्यादा ना हो
पर लग जाएगा अंदाज आप कहाँ हो!

जीवन का उद्देश्य सामने हो
अपने डगर उसी दिशा में आघे बढ़ते हो
फिर कोई रोक नहीं सकता
अपनी मंज़िल का रास्ता बिलकुल साफ़ दीखता।

हर कोई दीवाना है अपने मत का
गुरुर है उसे अपने कौवत का
ओर क्यों ना हो दूसरों की बोखलाहट का
जिन्होंने नहीं लिया आगाह उसकी आहट का।

हर शिकारी अपने अन्दाज़ से शिकार करता है
हर बुद्धिजीवी अपने आपको साबित करता है
जीवन में कुछ अच्छा करने का उसका नियम है
कुछ भी हो जाय, वो अपने वचन पर कायम है।

डग आगे करो Dag
Friday, March 17, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 March 2017

नजर अंदाज करो अपने डग आगे करो नजरे टिका के रखो इधर उधर की आवाज जरूर से सुनो।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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