देश में ही..Desh Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

देश में ही..Desh

धन को देश रखने का

पहले गंगा मैली हो गई
मौत का सन्देश ले आई
हम समले ही थे की बारिश आ गई!
तैयार फसल की बर्बादी हो गई।

नदियाँ कीबात ही छोडो
बैंको में लूट काराग छेड़ो
ये राजकारणी कैसे हमारे उद्धारक हो सकते है
पप्पूभाई कैसे विचारक हो सकते है?

उनको नहीं लगता था देश डूब जाएगा
लक्ष्मी बता देगी ठेंगा
अपना बनाया हुआ राज ध्वस्त हो जाएगा
"कई लाख से करोडो कैसे बन गए " ये राज खुल जाएगा।

आज हर शाख पर उल्लू बैठा है
उनको शर्म नहीं आती की कुसूर उनका ही है
इतने साल देश को लुटते रहे
अपने ही सपनों में राचते रहे।

कोर्ट से जमानत पर है
फिर भी ऐसे बरतते है
जैसे प्रमाणपत्र मिल गया हो
देश को खर्चे का श्रोत तो बताओ।

खाना पीना सरकारी खर्चो से
हवाईसफर और चिकित्सा सब पार्टी के खाते से
चारपाई और दुसरा आवंटननौटंकी कीनोकपर
जवान मर रहे कश्मीर की पॉलिसी पर।

अब आ गया वक्त उन्हें बाहर करने का
देश के कलेवर को बदलने का
सामान्य आदमी के भरोसे को कायम करने का
देश के धन को देश में ही रखने का।

देश में ही..Desh
Monday, February 19, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 20 February 2018

Tribhawan Kaul Waaaaah :) _/\_ :) 1 Manage Like · Reply · 1h

0 0 Reply
Rajnish Manga 19 February 2018

वर्तमान सरकार की नाक के नीचे आर बी आई और अन्य इदारे आँखें बंद कर के काम कर रहे हैं और आप इसके लिए पहले की सरकारों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. जानबूझ कर हक़ीकत से मुंह मोड़ना समझदारी नहीं.

1 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 20 February 2018

unke raCHYITA VOHI HAI

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 February 2018

अब आ गया वक्त उन्हें बाहर करने का देश के कलेवर को बदलने का सामान्य आदमी के भरोसे को कायम करने का देश के धन को देश में ही रखने का।

1 0 Reply
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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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