देशहित... Desh Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

देशहित... Desh

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देशहित
सोमवार, १२ नवमेबर

आजकल देशहित की चर्चा हो रही है
कौन बढ़िया कर रहा है उसका हिसाब मांगा जा रहा है
कोई अपनी गलती स्वीकार नहीं कर रहा
इसी पशोपेश में देश का बड़ा नुक्सान हो रहा।

"मै किसानो का कर्जा माफ़ कर दूंगा "
सत्ता में आने के बाद बिजली माफ़ कर दूंगा
ये अब लोग ऐसे बोल रहे है
जैसे अपनी जमा पूंजी से देने जा रहे है।

उनकी वाणी में संस्कार नहीं
हम किसी के पक्षकार नहीं
फिर भी सत्ताका गुरुर उन्हें नीचा दिखा रहा है
देश की साख प्रतिदिन गीराए जा रहे है।

अपना फायदा किस से पहुँच सकता है
फिर भले ही देशबिकता रहे
देश पर हमला जो जाय तो नीचा दिखना पड़े
इसी सोच के साथ वो रहते है हमेशा भिड़े।

प्रांतवाद, जातिवाद असीम सीमा पर है
हरकोई अपना आरक्षण चाहता है
"देश में खुशहाली " कैसे आए वो उनकी समझ के परे है
बस एक दूसरे को क्षोभनीय स्थिती में डालनेकी फिराक में है।

हसमुख मेहता

देशहित... Desh
Monday, November 12, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 12 November 2018

आजकल देशहित की चर्चा हो रही है कौन बढ़िया कर रहा है उसका हिसाब मांगा जा रहा है कोई अपनी गलती स्वीकार नहीं कर रहा इसी पशोपेश में देश का बड़ा नुक्सान हो रहा। so true. No one is agree to accept his faults. This is really a beautiful poem having touching expression with a lofty theme. Thanks for sharing.10

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 November 2018

प्रांतवाद, जातिवाद असीम सीमा पर है हरकोई अपना आरक्षण चाहता है देश में खुशहाली कैसे आए वो उनकी समझ के परे है बस एक दूसरे को क्षोभनीय स्थिती में डालनेकी फिराक में है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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