Diwali (दीवाली खूब मनाना रे! !) Poem by Pawan Kumar Bharti

Diwali (दीवाली खूब मनाना रे! !)

दीवाली खूब मनाना रे! !
जमकर धूम मचाना रे!
लेकिन ये भूल ना जाना रे! !
बाहर का अंधेरा भगाकर,
भीतर का तम भी मिटाना रे! !
दीवाली......
इतने अद्भुत राष्ट्र मे जन्मे इसी बात का गर्व है!
उल्लास, प्रेम, सत्य, शांति, सौहार्द का ये पर्व है! !
उपहार और मिठाई देकर सबको गले लगाना रे! !
दीवाली......
छोटे और बड़े सर्वत्र, स्नेह अपार बरसाएँ!
इस पावन पर्व की, सबको मंगलकामनाएँ! !
मगर पटाखों के प्रदूषण से पर्यावरण को बचना रे! !
दीवाली.....

Wednesday, October 8, 2014
Topic(s) of this poem: society
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This is the massage to every Indian on the occasion of Diwali festival.
COMMENTS OF THE POEM
Bhargabi Dei Mahakul 08 October 2014

Jamkar dhum machaanaare, Diwali khub manaanaare. Wonderful poem shared on the desk. Nice keep on writing. May God bless you.

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Pawan Kumar Bharti

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