Diwali Poems Poem by Shiv Chandra

Diwali Poems

Rating: 4.8

अंधेरे को धरा से,
मार भगाएं।
रहे जिनकी जिंदगी में,
सदा है अंधेरे।
उजाले न आए,
कभी न देखे सबेरे।
उन्हें आके फिर से,
सजाए-संवारें।
चलो एक दीया
फिर से जलाएं।
अंधेरे को धरा से
मार भगाएं।
निशा बन गई,
जिनकी जिंदगी की।
कहानी,
हमेशा है देखी।
दुख और परेशानी,
उनके दर्द और घावों,
पर मरहम लगाएं।
चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।
तिमिर है घना,
रात्रि न कटने वाली।
पता कब फिर से,
आएगी जीवन में दिवाली।
चलो उनके जीवन में,
सूरज बनके आएं।
उनके अंधकारपूर्ण जीवन में,
चांदनी बिखराएं।
चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।
अंधेरे को धरा से,
मार भगाएं।

Wednesday, September 23, 2015
Topic(s) of this poem: festival
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 23 September 2015

कविता में उन लोगों के प्रति कवि की प्रतिबद्धता देखने को मिलती है जो वंचित हैं, समाज के हाशिये पर खड़े हुए हैं. यदि ऐसे तबको के जीवन में प्रकाश आ सके तभी दिवाली जैसे पर्वों को मनाना सार्थक होगा. बहुत सुंदर.

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Anita Sharma 23 September 2015

very wonderful description.loved liked

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