बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज
नई नई योजनाये बनती करने नए घोटाले
गरीबो का नाम दिखाकर अपनी झोली में ये डाले
सड़को को कागजो में बनाकर मरम्मत का भी पैसा निकाले
पेंशन के बटवारे में भी करते है गडबडझाले
बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज
गाँव का सबसे अमीर है होता बीपीएल कार्डधारी
योजनाओ का लाभ लेने में आती उसकी पहली बारी
गरीब तो बीपीएल में नाम जुडवाने अपनी पूरी उम्र है गुजारी
इनकी जिंदगी नहीं बदलती चाहे हो कोई भी पार्टी सत्ताधारी
बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज
अपराधिक मामले है जिनपर लड़ते वही चुनाव
जीतने के बाद जनता से ये कहते हमारे सामने सिर झुकाव
अफसर भी नहीं बढ़ाते फाइल लिए बिन पैसे
पिसती है बस आम जनता ऐसे या वैसे
बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज
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देश की राजनैतिक एवम् सामाजिक व्यवस्था पर अच्छा व्यंग्य है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देता है. कविता से ही कुछ विचारणीय उद्धरण: गरीबो का नाम दिखाकर अपनी झोली में ये डाले / गाँव का सबसे अमीर है होता बीपीएल कार्डधारी / अपराधिक मामले है जिनपर लड़ते वही चुनाव / पिसती है बस आम जनता ऐसे या वैसे