दोस्ती के नाम
हे इश्वर तू इतनाभी प्यार न दे मुझे
कीतेरे लिखे स्नेह पत्र की आग बुझाने में मेरी असुवन धार भी कम पड जाये
हो जाएगी सारी नींद और थकन पूरी जब तेरे तक पहुचने की राह पकड़ेंगे
मुश्किल से मिले हैं दोस्त मुझे थोडासा रतजगा करने देअब
नहीं करना है मुझे हिसाब कोई नफे और नुकसान का
बस दोस्तों से मिली खुशियों कोअगणित करनेदे
जिन्हें मिलकर भूल जाये अपनाअस्तित्व भी हम
एइसे मित्रों में तेरा साक्षात्कार तो तू करने दे
पता नहीं मुझे तेरे दरबारमें कैसी होगी जिंदगी की मजा
पर आज जो जमी है रंगत स्वर्ग कीजमी पर जरा उसकी मजा मुझे लेने दे
अंत में तो आना ही है तेरी शरण में मुझे हे इश्वर आज दोस्तों संग थोड़ी सी गुफ्तगू कर लेने दे
सुना है बेहद
लम्बासफ़र होता है
तुझ तक पहुचने का उस लम्बी राहों परअपनी ये मीठी यादें सहला
लूँ इतना करम तू मुझ पर कर ही दे
हूँअभी मैं मस्ती में गीतों के बोलो में व्यस्त बस, हु खुश ही खुश दोस्तों संगत शायद हे इश्वरतुम
मुझे पूछोगे तब कहूँगी रुको मैं अब भी रस्ते में हूँ दोस्तों संग बिताई यादों में हूँ
औरजबअनन्त का ल म्बा सफ़र होगा ख़त्मऔर कहूँगी सबसे पहलेतुझे मेरे इश्वर बनालो तुमभी
कुछ दोस्त एइसे की दोबारा दुनिया बनाने की जरुरत ही तुम को न पड़े[
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इस कविता में भी शब्द जुड़े हुए हैं. पूरी की पूरी लाइन ही एक बड़े शब्द की भांति नज़र आ रही है जैसे: " सुनाहैबेहदलम्बासफ़रहोताहैतुझतकपहुचनेकाउसलम्बीराहों परअपनीयेमीठीयादेंसहला" कविता में आध्यात्मिक तत्व का सर्वत्र विस्तार है. कवि ईश्वर से जीवन और मृत्यु के बारे में संवाद करता है और अंत में जीवन को सार्थक बनाना चाहता है. बहुत सुन्दर. धन्यवाद बहन.