'विश्वगुरु: हँसते-हँते सच ' कवि गया प्रसाद आनन्द 'आनन्द गोंडवी' की कविता Poem by Gaya Prasad Anand

'विश्वगुरु: हँसते-हँते सच ' कवि गया प्रसाद आनन्द 'आनन्द गोंडवी' की कविता

देश बनेगा फिर से विश्वगुरु,
पोस्टर छप गया—काम पूरा हुआ,
इतिहास जहाँ पर रुका था साहब,
वहीं से भाषण फिर शुरू हुआ।

फिर आएँगे गुरु, भारी-भरकम,
ज्ञान कम—डायलॉग ज़्यादा होगा,
शिष्य वही जो सिर हिलाता रहे,
जो पूछे सवाल—वो ग़द्दार होगा।

अर्जुन का निशाना अचूक रहेगा,
अगर बायोडाटा सही होगा,
वरना एकलव्य की तरह भाई,
अंगूठा आज भी दान होगा।

आचार्य जी के चरणों में ज्ञान नहीं,
पूरा का पूरा गुरूर मिलेगा,
प्रणाम करो, प्रचार करो—
डिग्री नहीं, आशीर्वाद मिलेगा।

संत प्रवचन में त्याग सिखाएँगे,
ख़ुद एसी में विश्राम करेंगे,
राजनेता बोलेगा "सब बराबर",
और बराबरी पर काम करेंगे।

देश तो बनेगा ही विश्वगुरु,
इसमें अब कोई शक नहीं है,
बस इंसानियत, विवेक और न्याय—
इन सब की अभी ज़रूरत नहीं है।

कोई माने या न माने इस सच को,
हँसी में लिपटा संदेश यही है—
कहीं हम इंसान बनना न भूल जाएँ।
कहते कवि आनंद, क्या गलत क्या सही है

सच कड़वा नहीं होता दोस्तों,
हमने झूठ को
बहुत मीठा बनाकर
पीना शुरू कर दिया है।


- गया प्रसाद आनन्द 'आनन्द गोंडवी,

Tuesday, December 30, 2025
Topic(s) of this poem: famous poets
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