प्रणित प्रेम Gaya Prasad Anand Poem by Gaya Prasad Anand

प्रणित प्रेम Gaya Prasad Anand

आँखों में समंदर है
तो हाथों में रूहानी है
मेरा दिल दरिया है
जिसमें चाहत का पानी है

बेपनाह मुहब्बत है जिन्हें
वो आकर यहाँ डुबकी लगाते हैं
आनन्द के फूल खिलते हैं
हम जब मुस्कुराते हैं

मिलोगे जब भी तुम मुझसे
कि खुद को भूल जाओगे
निगाहें बंद करके देखोगे
तो अपने दिल में पाओगे

ऐ दोस्त _ _ _ _

नापने की कोशिश न करना
कभी मेरे दिल की गहराई का
इसमें डूबा जो इक बार
वो दोबारानहीं निकला
-Anand Gondavi

प्रणित प्रेम Gaya Prasad Anand
Sunday, July 1, 2018
Topic(s) of this poem: love
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