भोजन का महत्व Poem by Gaya Prasad Anand

भोजन का महत्व

गर्मी सूरज की हो
या धन की,
बड़ी अज़ीब होती है़।
गर्मी तन की हो
या पेट की,
बदनसीब होती है़।
इसी पेट की खातिर,
आदमी......।
दिन रात बहाता है़ पसीना,
दो वक्त की रोटी के लिय।
चीर कर धरती का सीना,
उगाता है़ अनाज।
करता है़ कड़ी मेहनत।
कि सब को,
भरपेट भोजन मिले।
कोई भूखा न रहे,
कोई भूखा न मरे।
किन्तु
पेट कि गर्मी शान्त होने के बाद लोग
भोजन छोड़ देते हैं थाली में।
भोजन के महत्त्व को हम
समझ नहीं पाते।,
भोजन के अभाव में लोग
भूखे मर जाते।
छोटी छोटी बातों का,
हम रखें सदा ध्यान।
कभी भूल से मत करें,
अन्न का अपमान।
भोजन करने से पहले,
हम सोचें समझें जानें।
अन्न के एक -एक दाने की,
कीमत को पहचानें।
भोजन उतना ही लें थाली में,
कि व्यर्थ न जाए नाली में।
हम खुद सुधरें
व लोगों को बताएं,
अनाज को
बर्बाद होने से बचाएं।

गया प्रसाद आनन्द
मो.999060170

भोजन का महत्व
Friday, March 28, 2025
Topic(s) of this poem: feeling guilty
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