मुझे भी चाहिय समानता का अधिकार Poem by Gaya Prasad Anand

मुझे भी चाहिय समानता का अधिकार

गोस्वामी तुलसीदास से,
ढोलक हुई नाराज।
आखिर मुझे ही क्यों?
ताड़न का अधिकारी कहा ।
बांसुरी- हारमोनियम,
क्या ताड़न के अधिकारी नहीं।
मेरे दोनों गाल हुए चोटिल,
मैं सदा थप्पड़ ही सहती रही।
सदियों से होता रहा मेरा शोषण,
मेरे तन पर फेरते रहे अंगुलियां।
मैं चीखती रही चिल्लाती रही,
किसी ने नहीं सुनी मेरी पुकार।
मुझे इस्तेमाल किया जाता रहा
कोठे पर, मंदिरों में,
अखंड रामायण में, शादी ब्याह में।
अब मैं चुप नहीं रहने वाली,
उठाऊंगी आवाज।
नारियों के सम्मान में,
शूद्रों व पशुओं के सम्मान में।
जिनका होता रहा शोषण,
सहते रहे अत्याचार,
चुपचाप अपना धर्म समझकर।
बना दिया इन्हें
ताड़न का अधिकारी।
मैं बांसुरी नहीं,
जो किसी के अधरों पर
इठलाती रहूं।
मुझे जितना पीटोगे,
उतना ही चिल्लाऊंगी।
उठाऊंगी आवाज
जुर्म के खिलाफ, अत्याचार के खिलाफ।
आखिर कब तक करोगे शोषण
महिलाओं का, शूद्रो का,
कब तक गुलाम बना कर रखोगे हमें।
आखिर कब तक!
मुझे भी चाहिए समानता का अधिकार

गया प्रसाद आनन्द
शिक्षक चित्रकार एवं कवि

मुझे भी चाहिय समानता का अधिकार
Monday, September 11, 2023
Topic(s) of this poem: motivational
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