एक दिन हम तौ मन ही मन मा
किहन कल्पना भारी
काश होइत हम नारी
सुंदर मुखड़ा चाँद सा टुकड़ा
नैना हुवत कटारी
पतली कमर मदमस्त जवानी
और उमरिया बारी
गाल गुलाबी चाल शराबी
होंठ होत रसदारी
काश होइत हम नारी
नैनम कजरा बाल मा गजरा
सोलह करित सिंगारी
आपन होंठ खूब हम रंगित
लिहे लाल लिपिस्टिक धारी
काश होइत हम नारी
लेहन्गा पहिरित चोली पहिरित
पहिरित साया सारी
सलवार सूट पहिर जेहि दिन हम
घूमित हाट बजारी
अखिंयन से हम करित इशारा
तिरछी नजरिया मारी
केतनहु लोगवा घायल होते
जब नैनन चलत कटारी
यारन कै न कमी रहत
हम जब तक रहित कुँवारी
काश होइत हम नारी
जेहि दिन बेहि पिया संग जाइत
खुशियाँ होत अपारी
पिया जो हम से कुछहु पुछते
कहित सती हम नारी
पिया का अपने खुश हम राखित
मानित बतिया सारी
काश होइत हम नारीf
प्रसव पीड़ा का होती है
कैसे सहती नारी
वहि दिन हमरे समझ मा आवत
जेहि दिन होइत महतारी
नारी का कोई कम न आंको
नर से नारी भारी
दुःख पीड़ा सहकर भी जग में
नर का है आधारी
नारी का समझ तब आवत
जब होइत हम नारी
एक दिन हम तव मन ही मन मा
किहन कल्पना भारी
काश होइस हम नारी
-- गया प्रसाद आनन्द
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem