काश होइत हम नारी Poem by Gaya Prasad Anand

काश होइत हम नारी

एक दिन हम तौ मन ही मन मा
किहन कल्पना भारी
काश होइत हम नारी
सुंदर मुखड़ा चाँद सा टुकड़ा
नैना हुवत कटारी
पतली कमर मदमस्त जवानी
और उमरिया बारी
गाल गुलाबी चाल शराबी
होंठ होत रसदारी
काश होइत हम नारी
नैनम कजरा बाल मा गजरा
सोलह करित सिंगारी
आपन होंठ खूब हम रंगित
लिहे लाल लिपिस्टिक धारी
काश होइत हम नारी
लेहन्गा पहिरित चोली पहिरित
पहिरित साया सारी
सलवार सूट पहिर जेहि दिन हम
घूमित हाट बजारी
अखिंयन से हम करित इशारा
तिरछी नजरिया मारी
केतनहु लोगवा घायल होते
जब नैनन चलत कटारी
यारन कै न कमी रहत
हम जब तक रहित कुँवारी
काश होइत हम नारी
जेहि दिन बेहि पिया संग जाइत
खुशियाँ होत अपारी
पिया जो हम से कुछहु पुछते
कहित सती हम नारी
पिया का अपने खुश हम राखित
मानित बतिया सारी
काश होइत हम नारीf
प्रसव पीड़ा का होती है
कैसे सहती नारी
वहि दिन हमरे समझ मा आवत
जेहि दिन होइत महतारी
नारी का कोई कम न आंको
नर से नारी भारी
दुःख पीड़ा सहकर भी जग में
नर का है आधारी
नारी का समझ तब आवत
जब होइत हम नारी
एक दिन हम तव मन ही मन मा
किहन कल्पना भारी
काश होइस हम नारी

-- गया प्रसाद आनन्द

काश होइत हम नारी
Wednesday, June 28, 2023
Topic(s) of this poem: woman
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