'मुखौटों का मेला' झूँठ को बेनकाब करती कवि गया प्रसाद आनन्द की कविता Poem by Gaya Prasad Anand

'मुखौटों का मेला' झूँठ को बेनकाब करती कवि गया प्रसाद आनन्द की कविता

कुछ नेता हैं कुछ ताने हैं
कुछ मन ही मन मा ठाने हैं
कुछ गुरू हैं कुछ गुरूर हैं
कुछ घमंड मा चकनाचूर हैं

कुछ सन्त कै मीठी वाणी है
कुछ सन्त कै शब्द कटारी है
कुछ सन्त बड़े शैलानी हैं
कुछ सन्त बड़े अभिमानी हैं

कुछ डकैति हैं कुछ दानी हैं
कुछ करते अइचातानी हैं
कुछ मंच पे सत्य बखानें हैं
कुछ झूठ कंठ से गाने हैं

कुछ राम नाम की ओट लिये
कुछ राम नाम पे चोट किये
कुछ त्याग धरें हैं चोले मा
कुछ भोग रमे हैं झोले मा

कुछ अफसर घूसखोर बने
कुछ न्यूज़ रिपोर्टर खूब तने
हैं सत्ता कै गुण गाय रहे
मनमानी खबर चलाय रहे

पर जनता अब सब जान गई
हर चाल, ढाल पहचान गई
जो सच है सो टिक जाएगा
जो ढोंगी है, वो मिट जाएगा

- गया प्रसाद आनन्द

'मुखौटों का मेला' झूँठ को बेनकाब करती कवि गया प्रसाद आनन्द की कविता
Tuesday, December 30, 2025
Topic(s) of this poem: famous poets
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