गया प्रसाद आनन्द की कविता -हर जगह पहुँच है़ मेरी 'मोबाइल' Poem by Gaya Prasad Anand

गया प्रसाद आनन्द की कविता -हर जगह पहुँच है़ मेरी 'मोबाइल'

एक दिन एक व्यक्ति ने पूछा
आपका परिचय?

मैंने कहा -
मैं ब्राह्मण हूँ, मैं क्षत्रिय हूँ,
मैं वैश्य हूँ मैं ही शूद्र हूँ।
हिन्दुओं में हिन्दू हूँ,
मुस्लिमों में मुस्लिम हूँ,
सिक्ख भी हूँ, मैं ही ईसाई हूँ,
नहीं है नफ़रत किसी से
सभी का भाई हूँ।

उसने कहा क्या औक़ात है तेरी?

मैंने कहा -
जनता से संतरी तक,
नेता से मंत्री तक,
पुलिस से वक़ील तक,
कर्मचारी से अधिकारी तक,
सब जगह पहुँच है मेरी।

देश में विदेशों में,
गाँव गली कूचों में
हर गरीब अमीर तक,
राजा से फ़कीर तक,
बच्चे -बूढ़े -जवान तक,
साहूकार किसान तक
सब जगह पहुँच है मेरी।


दुल्हन की डोली में,
महिलाओं की चोली में
कच्छा पैन्ट नैकर में,
हर किसी के जेब में,
मुहब्बत में, मुसीबत में,
धोखा- फऱेब में,
हर जगह पहुँच है मेरी।

अनपढ़ से विद्वान तक,
इंटरनेट विज्ञान तक
अस्पताल से शमशान तक,
मस्जि़द से देवालय तक,
रसोईं से शौचालय तक,
मधुशाला से वेश्यालय तक,
हर जगह पहुँच है मेरी।

बड़ा ही विचित्र हूँ
मैं पवित्र हूँ
एक पल भी नहीं रह पाओगे
मेरे बिन
मेरी सबसे अलग ही स्टाइल है
स्वर दूत हूँ मैं
मेरा नाम 'मोबाइल' है,
हर जगह पहुँच है़ मेरी।
- गया प्रसाद आनन्द
*9919060170*
28/08/2023

गया प्रसाद आनन्द की कविता -हर जगह पहुँच है़ मेरी 'मोबाइल'
Monday, September 11, 2023
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