गया प्रसाद आनन्द की कविता 'आख़िर क्यों' (ईश्वर से संवाद) Poem by Gaya Prasad Anand

गया प्रसाद आनन्द की कविता 'आख़िर क्यों' (ईश्वर से संवाद)

हे ईश्वर!
सुना है कि तूं सर्व शक्तिमान है।
सब जगह विद्यमान है,
तेरी सत्ता के बिना, पत्ता भी नहीं हिलता
तेरी सत्ता के बिना फूल भी नहीं खिलता

तो फिर....
आखिर क्यों?
हो रहे हैं अत्याचार
बढ़ रहे हैं बलात्कार
आखिर क्यों?
बढ़ रहे हैं अपराध
हो रही है हत्याएं
एक मां के आंचल से
छिन जाता है उसका लाल
उजड़ जाता है, उसके सपनों
का संसार ।

लोग कहते हैं
ईश्वर अंधा है,
सब देखता है.
ईश्वर की यही इच्छा थी
क्या? यही है तेरी इच्छा
क्या? यही हैं तेरे संस्कार
कहीं लूट तो कहीं हत्या
कहीं फिरौती
तो कहीं भ्रष्टाचार ।

अब तो
इंसानियत भी मर चुकी है
एक बेटा अपने बाप के
आदर्शों को नहीं मानता
इस संसार मे आकर
समाजिकता को ही नहीं जानता
पतन हो चुका है
उसके नैतिक मूल्यों का
इसका दोषी वो नहीं,
सिर्फ तूं है तू
आखिर क्यों?

आज जनता के अदालत में
इसका फैसला होगा ।
तेरे ही बनाये मानव से
तेरा सामना होगा ।
जब हर जीव में तूं
घट घट में तू, कण कण में तू
मुझमें भी तू, उसमें भी तूं
हर जगह तू ही तूं,
हर तरफ तूं ही तूं
जो कुछ, करता है तूं ही तूं

तमाम गवाहों व बयानों से
पता चलता है
तेरे हर कारनामों का सबूत मिलता है।
कि दोषी ये नहीं, दोषी वो नहीं
दोषी मैं नहीं, दोषी तूं है तूं,
सिर्फ तूं
क्योंकि सुना है
हे ईश्वर तूं सर्व शक्तिमान है
हर जगह विद्यमान है।
और करता कुछ नहीं
आखिर क्यों?
क्यों?
आख़िर क्यों?

मौलिक रचना -
गया प्रसाद आनन्द 'आनन्द गोंडवी '
मो.9919060170

गया प्रसाद आनन्द की कविता 'आख़िर क्यों' (ईश्वर से संवाद)
Monday, November 24, 2025
Topic(s) of this poem: god
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