सूरज दादा Poem by Gaya Prasad Anand

सूरज दादा

काहे को आँख दिखाते हो सूरज दादा
अषाढ़ के महीने में अब तपो यूं न ज्यादा

बहुत हो चुकी है तेरी मनमानी
हो जाओगे ठंडे जब बरसेगा पानी

बादल के आँचल में छुप जाओगे
अपने किए तुम शर्माऔगे

रिमझिम फुहारें जब आऐंगी
नज़रेँ तुम्हारी ये झुक जाऐंगी

न कोई चलेगी तेरी मनमानी
हवाऔ के संग जब बरसेगा पानी

बहुत हो चुका अब तपो यूं न ज्यादा
मान जाओ कहना ऐ सूरज दादा
- गया प्रसाद आनन्द
9919060170

सूरज दादा
Wednesday, June 28, 2023
Topic(s) of this poem: sunrise
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