काहे को आँख दिखाते हो सूरज दादा
अषाढ़ के महीने में अब तपो यूं न ज्यादा
बहुत हो चुकी है तेरी मनमानी
हो जाओगे ठंडे जब बरसेगा पानी
बादल के आँचल में छुप जाओगे
अपने किए तुम शर्माऔगे
रिमझिम फुहारें जब आऐंगी
नज़रेँ तुम्हारी ये झुक जाऐंगी
न कोई चलेगी तेरी मनमानी
हवाऔ के संग जब बरसेगा पानी
बहुत हो चुका अब तपो यूं न ज्यादा
मान जाओ कहना ऐ सूरज दादा
- गया प्रसाद आनन्द
9919060170
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