हां, मैने प्रण कर रखा है ।
धूल धूसरित हो जाने को
तब तक मैं तैयार नही हूं
धरा के मुख में सो जाने को
अब तक मै तैयार नही हूं
मैने यह प्रण कर रखा है
भाई भाई हो सभी हमारे
बहनें सभी बहन के जैसी
धरती को मां चुन रखा है
नही चिता की लपटों तक
तब तक मेरे पग बढ़ पायेंगें
जब तक जीवन के मूल्यों का
दाम सही हम दे पायेंगें
सांस है चलती, चलती जाये
दीर्घायु का मोह नही है मन में मेरे
सांस के इस आने जाने में देखा भाला
हर सांस यहां अनमोल है तन में
है ज्ञात मुझे बस किसी एक दिन
छोड़के तन को जाना होगा,
उस रात का है अहसास प्रतिदिन
अफसोस कहां रत्ती भर होगा
जीवन सार्थक तब ये होगा
काम आसकूं कभी किसी के
जो कमी कभी अंदर थी मेरे
न कमी कभी भीतर हो तेरे
इस धरा की गोद में
खेला-पला आगे बढ़ा हूं
है मुझे सब याद
इसके अंक में सोया जिया हूं
आज फिर तुमको बताना चाहता हूं
खून के रिश्ते सजाने मैं चला हूं
बांह में डाले सभी की बांह अपनी
स्वर्ग धरती पर बसाने मैं चला हूं
चांद की उस शबनमी सी चांदनी में
मन को अपने, आज नहलाने चला हूं
सूर्य की किरणों से जगमग रोशनी में
तन-बदन को, अपने सहलाने चला हूं
ये हवा हो पूरबी या पच्छिमी हो
सांस लेने को, दिलाने को चला हूं
और जग के पेय जल जो भी कहीं है
मान अमृत पी-पिलाने को चला हूं
जंगलों के प्राणियों के साथ जीना चाहता हूं
पक्षियों के संग नभ में आज उड़ना चाहता हूं
रग हर फूलों के मन में आज भरना चाहता हूं
मैं अभय का रूप धर, फिर आज जीना चाहता हूं
हो नही सकता असंभव स्वप्न मेरा
एक न एक दिन लगेगा जग में मेला
मै रहूं या न रहूं यह जग रहेगा
कल नही कोई रहेगा फिर अकेला
हां, यही प्रण कर रखा है,
हां, मैने प्रण कर रखा है ।
अभय शर्मा
27 फरवरी 2010
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